शीशम (Dalbergia sissoo) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जो आयुर्वेद में सदियों से एक बहुमूल्य औषधि के रूप में जाना जाता है। इसके पत्ते, तना, छाल और बीज का Use कई औषधीय गुणों के कारण विभिन्न बीमारियों के Treatment में लाभकारी माना गया है। इसे ‘इंडियन रोज़वुड‘ भी कहा जाता है, इसमें Nitrogen, Calcium, Phosphorus Magnesium, Micronutrients(Iron, Zinc, Copper) जैसे nutrients होते हैं| आज के इस article में हम शीशम के पाँच main आयुर्वेदिक लाभों पर बात करेंगे और जानेंगे कि कैसे इसका उपयोग हमारी health को improve कर सकता है।
आइये हम आपको short में समझते है की शीशम के क्या-क्या फायदे हो सकते है |
समस्या | शीशम का उपयोग | कैसे करें |
बुखार | शीशम की पत्तियों का रस | शीशम की पत्तियों को पीसकर उनका रस निकाल लें और दिन में दो-तीन बार एक चम्मच से सेवन करें। |
त्वचा रोग | शीशम की पत्तियों का लेप | शीशम की पत्तियों को पीसकर उनका लेप बना लें और प्रभावित जगह पर लगाएं। |
साइटिका | शीशम का तेल | शीशम के तेल से प्रभावित जगह पर मालिश करें। |
अत्यधिक रक्तस्राव | शीशम की छाल का काढ़ा | शीशम की छाल को उबालकर उसका काढ़ा बना लें और दिन में दो-तीन बार एक कप से सेवन करें। |
घाव और अल्सर | शीशम की पत्तियों का लेप | शीशम की पत्तियों को पीसकर उनका लेप बना लें और घाव या अल्सर पर लगाएं। |
आशा है की आपने Short में उपर शीशम के पेड़ के औषधीय गुणों के बारे में जानकारी मिल गयी होगी, अब हम आपको इसके लाभों को इस आर्टिकल के माध्यम से समझायेंगे
शीशम के औषधीय लाभ:
1. त्वचा रोगों में सहायक
शीशम के पत्तों का लेप त्वचा के रंग को निखारने में बहुत मदद करता है । यह मुंहासों, दाग-धब्बों और त्वचा रोगों ठीक करने में मदद करता है। इसके एंटीसेप्टिक गुण घावों को भरने में भी मदद करते हैं। आइये समझते है इसको उपयोग करने की कुछ विधिया
- शीशम की पत्तियों के रस को मीठे तेल में मिलाएं।
- इस मिश्रण को त्वचा पर लगे घावों पर लगाएं।
- या, मरीज को इसकी पत्तियों का 50-100 मिलीलीटर का काढ़ा दिन में दो बार दें।
- यह फोड़े और घावों को प्रभावी ढंग से ठीक करता है।
2. साइटिका के इलाज में सहायक
साइटिका एक बीमारी है जिसमें कूल्हे से पैर तक जाने वाली सबसे बड़ी तंत्रिका, साइटिका तंत्रिका, दब या जल जाती है। इससे पैर में तेज दर्द, झुनझुनी और कमजोरी महसूस हो होने लगती है । शीशम के पेड़ के उपयोग की मदद से इस बीमारी को ख़त्म किया जा सकता है | इसकी उपयोग विधि कुछ इस प्रकार है
- इसकी मोटी छाल का 10 किलो पाउडर लें और 23.5 लीटर पानी में उबालें।
- पानी को तब तक उबालें जब तक यह 1/8 भाग न रह जाए।
- इस घोल को कपड़े से छानकर फिर से पकाएं, जब तक यह गाढ़ा न हो जाए।
- इस गाढ़े द्रव का 10 ग्राम घी मिले हुए दूध के साथ, दिन में तीन बार दें।
- 21 दिनों तक इसे जारी रखें, यह विकार को पूरी तरह ठीक करता है।

3. बुखार में लाभकारी
- किसी भी प्रकार के बुखार में, शीशम का 20 ग्राम अर्क 320 मिलीलीटर पानी और 160 मिलीलीटर दूध में लें।
- इस मिश्रण को उबालें, जब तक केवल दूध न बच जाए।
- इसे रोगी को दिन में तीन बार दें।
4. घाव और अल्सर को ठीक करता है
घाव और अल्सर त्वचा या शरीर के अंदरूनी हिस्से में होने वाली चोटें हैं। ये कई कारणों से हो सकते हैं और उनकी गंभीरता अलग-अलग हो सकती है। हालाँकि आयुर्वेद में इसको शीशम की मदद से ठीक करने के कई विधिया है जिनमे से कुछ ये रही
- प्रभावित क्षेत्र पर शीशम का तेल लगाएं।
- यह खुजली, जलन और अल्सर को ठीक करने में सहायक है।
5. मासिक धर्म(पीरियड्स) में अत्यधिक रक्तस्राव को सामान्य करता है
- शीशम की 8-10 पत्तियां लें और उन्हें 25 ग्राम चीनी के साथ पीस लें।
- इसे मरीज को दिन में दो बार दें।
- कुछ ही दिनों में यह रक्तस्राव को सामान्य कर देता है।
- इसके अतिरिक्त, यह सफेद प्रदर और पुरुषों में मूत्र विकारों में भी लाभकारी है।
- सर्दियों में इसके साथ 4-5 काली मिर्च भी दी जा सकती है।
- मधुमेह के रोगी इसे बिना चीनी मिलाए ले सकते हैं।
ये थे शीशम के स्वास्थ्य लाभ और कुछ सामान्य जानकारी। तो अब इस पेड़ के बारे में आपका क्या विचार है? इनमें से किसी भी चिकित्सा पद्धति को अपनाने से पहले, पास के किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक या हर्बलिस्ट से परामर्श अवश्य करें।
शीशम के अन्य उपयोग
- फर्नीचर और निर्माण कार्यों में उपयोग: शीशम की लकड़ी बहुत मजबूत और टिकाऊ होती है, जो इसे फर्नीचर और भवन निर्माण कार्यों में उपयोगी बनाती है।
- वृक्ष की विशेषताएँ:
- शीशम का पेड़ 100 फीट तक ऊंचा हो सकता है।
- इसकी मोटी भूरी छाल होती है और नई शाखाएं मुलायम और झुकी हुई होती हैं।
- इसके फूल पीले-से सफेद होते हैं और इसके फल लंबे, चपटे और 2-4 बीज वाले होते हैं।
- रासायनिक संरचना: शीशम की लकड़ी और बीजों से निकाले गए तेल में औषधीय गुण होते हैं। लकड़ी में तेल और फलों में टैनिन होता है, जबकि बीजों में स्थिर तेल होता है।
चलते चलते हम आपको शीशम से सम्बन्धी Gernal knowledge भी दे रहे है जो आपके लिए काफी Helpful होगी
विशेषता | विवरण |
वैज्ञानिक नाम | Dalbergia sissoo |
अन्य नाम | भारतीय रोज़वुड, शीशम, शिनशाप, श्यामा, सिसु, बिरिडी |
परिवार | Fabaceae |
प्रकार | पर्णपाती वृक्ष |
ऊंचाई | 25 मीटर तक |
जलवायु | उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय |
मिट्टी | अच्छी तरह से सूखा, समान रूप से नम मिट्टी |
मूल निवास | दक्षिणी ईरान और भारतीय उपमहाद्वीप |
लकड़ी | कठोर, भारी, सुनहरे भूरे से गहरे भूरे रंग की |
लकड़ी का उपयोग | फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र, इमारती लकड़ी, लकड़ी का कोयला |
पर्यावरणीय लाभ | मिट्टी संरक्षण, जैव विविधता |
धार्मिक महत्व | कई धर्मों में पवित्र माना जाता है |
अन्य उपयोग | रंग और डाई, पशुओं के चारे |
निष्कर्ष:
आयुर्वेद की दृष्टी से शीशम एक बेहद लाभकारी पेड़ है, जो कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इसे अपनी डाइट में शामिल करके आप कई बीमारियों से बचाव कर सकते हैं और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
Note- यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के लिए है और किसी भी चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ली जानी चाहिए। किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।